Cheque Bounce New Rule : चेक बाउंस होने को लेकर हाईकोर्ट ने सुनाया का बड़ा फैसला, अब से लागू होगा ये नया नियम
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है । अदालत ने कहा कि कंपनी के दिवालिया हो जाने के बाद भी उसके निदेशकों को अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए । अदालत ने भी उन्हें इस संबंध में कोई आदेश नहीं दिया है ।

Cheque Bounce New Rule : कुछ लोग अभी भी चेक से भुगतान करते हैं, विशेषकर आज के डिजिटल भुगतान के युग में । चेक से भुगतान करते समय चेक बाउंस होना सबसे बड़ी चुनौती है । यह कानून चेक बाउंस होने पर भी लागू होता है ।
Cheque Bounce New Rule
यही कारण है कि प्रतिदिन चेक बाउंस के कई मामले अदालतों में आ रहे हैं । हाईकोर्ट ने हाल ही में चेक बाउंस के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है । इससे भारत के लोग प्रभावित हुए हैं ।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है । अदालत ने कहा कि कंपनी के दिवालिया हो जाने के बाद भी उसके निदेशकों को अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए । अदालत ने भी उन्हें इस संबंध में कोई आदेश नहीं दिया है ।
अदालत ने चेक बाउंस मामले में कंपनी के निदेशक की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि मुकदमे की सुनवाई के द्वारा उस व्यक्ति के कार्यों की समीक्षा करना संभव है जो कंपनी का निदेशक है और सभी मामलों का प्रभारी है । इसके अलावा, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई करने और तीन महीने में सुनवाई पूरी करने का भी निर्देश दिया । Cheque Bounce New Rule
न्यायाधीश ने वालेचा इंजीनियरिंग कंपनी के निदेशक दिनेश हरिराम वालेचा की याचिका खारिज कर दी । वेलाचेया ने विशेष सीजेएम इटावा की अदालत में लंबित चेक बाउंस विवाद में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की । इसके अलावा, उसने कार्यवाही को रद्द करने की भी मांग की थी । Cheque Bounce New Rule
वालेचा इंजीनियरिंग कंपनी ने प्रतिवादी को कुछ काम करने का ठेका दिया था । कंपनी ने ठेके के बदले उन्हें 71.665 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया था । कंपनी ने प्रतिद्वंदी को चेक के माध्यम से 6.50 करोड़ रुपये का भुगतान किया, लेकिन चेक बाउंस हो गया । विपक्षी कंपनी ने याचिका दायर की और नोटिस दिया, लेकिन कंपनी ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया और इस राशि का कोई भुगतान नहीं किया । Cheque Bounce New Rule
शिकायत दर्ज होने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता कंपनी के निदेशकों को कई बार समन और गैर-जमानती वारंट जारी किए । कोई भी विपक्षी पक्ष अदालत में उपस्थित नहीं हुआ । यहां तक कि निदेशकों की जब्ती भी शुरू हो गई थी । कुछ निदेशक बाद में अदालत में पेश हुए और जमानत ले ली । लेकिन वह बाद में वापस नहीं आया। वे लगातार उपस्थिति माफी की मांग करते रहे और उपस्थित होने से बचते रहे । विपक्षी कंपनी ने उच्च न्यायालय को मुकदमे की सुनवाई छह महीने में पूरी करने का निर्देश दिया ।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिद्वंद्वी के नोटिस में तारीख का कोई उल्लेख नहीं था और निदेशक की कोई भूमिका का उल्लेख नहीं किया गया था । चेक जारी करते समय निदेशक ने कंपनी के एक कर्मचारी को पावर ऑफ अटॉर्नी दी थी। निदेशक इसमें शामिल नहीं है । इसके अलावा, निदेशक ने बताया कि कंपनी दिवालिया हो चुकी है और उस पर राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण में मुकदमा चल रहा है । Cheque Bounce New Rule
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई 9 सितंबर 2020 को छह महीने में पूरी करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया गया है ।
सभी निदेशकों को इसमें भाग लेने से छूट दी गई है । ट्रायल कोर्ट का यह निर्णय वास्तव में अपमानजनक साबित हो रहा है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और अन्य निदेशकों के मुकदमे को टालने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं । यदि कंपनी दिवालिया हो जाती है, तो निदेशक भी उत्तरदायी होंगे । Cheque Bounce New Rule